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संस्कार मृत्यु के बाद भी जीवित रखता है

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किसी भी घर के मजबूत होने के लिए उसकी नींव का मजबूत होना आवश्यक है ऐसे ही मनुष्य को अपनी मृत्यु के बाद भी स्वयं को जीवित रखने के लिए उसके संस्कार एवं प्रतिभा सहायक बन जाती हैं. यह विदित है कि संस्कार विहीन मानव का अस्तित्व समाज केलिए उस प्रकार है जैसे घरों से दूर एकत्र गंदगी का ढेर. संस्कार केवल व्यक्ति विशेष को ही सात्विकता व सार्थक जीवन प्रदान नहीं करता अपितु उसकी पीढियों को भी सद्मार्ग पर अग्रसर होकर उन्नति के लिए सहायक होता है. हमारे जीवन में संस्कार किस प्रकार सम्मिलित हैं इसका आंकलन करने में कोई कठिनाई नहीं है बस संस्कारो को सिंचित करते रहना होगा ताकि हमारी पीढियां अर्थात देश का भविष्य अपना जीवन समृद्धशाली बना सके,उन्हें इसके लिए मजबूत करना होगा.
संस्कारो की बात जनमानस में मात्र दिखावे का पर्याय बनता जा रहा है जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए और हमें अपने बच्चो को निरंतर इस ओर प्रेरित किया जाना चाहिए. संस्कार जीवन को सरल और सुखद बनाता है जबकि इसके अभाव में मनुष्य के द्वारा सरलता से मिली सुख संपत्ति को भी स्वयं के द्वारा नष्ट कर दिया जाता है. हम अपने अथवा बच्चो के मध्य संस्कार का आंकलन इस प्रकार कर सकते हैं कि बच्चे ईश्वर के सत्य को मानते हैं और हमारे साथ पूजा अर्चना में सम्मिलित रहते हैं, घर के बड़े सदस्यों की अनुपस्थिति में अथवा उनके रहने के बाद भी उन्हें समयाभाव होने पर संध्या वंदन में धुप,दीप जलाते हैं, पुत्रियां माता के साथ रसोई घर में पर्याप्त समय देकर उनसे उपयुक्त ज्ञान सीखने के साथ ही गृह कार्य में सहयोग करती हैं, पुत्र पिता के द्वारा कही गयी बातों का मनन करता है और समय के साथ उनके कार्यों में सहयोग करता है, बहन और भाई के मध्य सामंजस्य बना रहता है, बच्चे अपने से बडो का आदर करते हैं, अतिथि के आगमन पर उनकी सेवा में समय देकर रूचि लेते हैं, अनावश्यक क्रियाकलापों से बचते हुए अध्ययन पर ध्यान देते हैं, मनोरंजन के लिए हास्य, ज्ञानवर्धक, साहित्य से जुडी एवं मनोरंजन से पूरित कार्यक्रम देखना व पढ़ना पसंद करते हैं, अध्यापको का सम्मान करते हैं, जीवो पर दया करते हैं, असहाय की सहायता के लिए अग्रसर रहते हैं, अनावश्यक धन व्यय नहीं करते और धन को संचित करने का प्रयास करते हैं. यह तथ्य सीमित है जबकि संस्कारो का दायरा इससे भी अधिक है किन्तु सामान्यतया अधिक से अधिक गुणों में सन्निहित अथवा संस्कारो को ग्रहण कर अपने बच्चो को प्रेरित करने वाला निश्चित रूप से सम्मान का पात्र है तो क्यूँ न संस्कार अपनाये,जो मृत्यु के बाद भी जीवित रख सकता है.

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