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कार्य एजेंडा मिटा सकता है भ्रष्टाचार

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वर्तमान में चुनाव का अर्थ मात्र प्रत्याशियों द्वारा सुख सुविधा उपभोग किये जाने का साधन मात्र होता जा रहा है, चुनाव के समय प्रत्याशी तरह तरह के लुभावने वादे करके मतदाताओ के भरोसे को उम्मीद से जगाते हैं फिर चुनाव के बाद जब वह आशाये पूर्ण नहीं होती तो मतदाता का भरोसा खंडित हो जाता है. इस प्रकार मतदाता के ह्रदय में कुंठा का बीजारोपण होने लगता है जिसका प्रभाव गलत अफवाहों के माध्यम से समाज के सभी वर्गों को दूषित करता रहता है. अब चुनाव प्रत्याशी वादा करके काम न करे तो यह केवल मतदाता के लिए ही नहीं क्षेत्रीय विकास सहित देश के विकास में बाधक बनता है. प्रत्याशी भी चुनाव जीतकर समझता है अब अगले पांच वर्षों तक सत्ता का सुख भोगना ही है इसके बाद दूसरे प्रयास करके फिर सत्ता पर काबिज हो जाना बड़ी बात नहीं है. उनकी सोच सही भी है आखिर आजादी के वर्षों से अब तक कार्य तो नाम मात्र होता है विकास के नाम पर, शेष धनराशि तो कमीशन उपभोग के लिए होती है. क्या किया जा सकता है कि चुनाव प्रत्याशी झूठे वादों से दूर रह सके, देश का विकास हो सके, सरकार द्वारा विकास कार्यों के लिए दिया जाने वाला अनुदान उस कार्य के लिए प्रयोग हो सके जिस कार्य के लिए आबंटन किया गया. इसमें करने के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है बस थोड़े से भ्रष्टाचार के वातावरण में साहस और ईमानदारी के प्रति दृढ संकल्प होने की आवश्यकता है हमारी सरकार सहित चुनाव आयोग को, कुछ नियमो में परिवर्तन की आवश्यकता है, प्रत्याशियों को चुनावी वादे अथवा विकास कार्य पूर्ण करने के लिए नियमो के द्वारा प्रतिबंधित किया जाना आवश्यक है. इसमें ऐसा किया जा सकता है की चुनाव के समय उम्मीदवार की श्रेणी में आने वाले प्रत्याशियों द्वारा अपने क्षेत्र का भ्रमण करते हुए चुनाव जीतने पर वह क्या व् कितना कार्य करेंगे साथ ही कार्य पूर्ण करने की अवधि क्या होगी ? इस प्रकार का एजेंडा लिखित रूप से स्पष्ट होना चाहिए. मतदाताओ की जानकारी के लिए चुनाव उम्मीदवार द्वारा दिए गए विकास कार्य एजेंडा को सार्वजानिक किया जाना चाहिए. चुनाव के बाद जिलाधिकारी द्वारा स्वयं जनपद स्तर पर भ्रमण करते हुए समय समय पर प्रत्याशियों द्वारा दिए गए कार्य एजेंडा एवं किये गए कार्य की समीक्षा की जानी चाहिए एवं निरंतर उसकी आख्या राज्य सरकार एवं केंद्र सरकार को प्रेषित करते रहना चाहिए, यदि उम्मीदवार अपने किये गए किसी वादे अथवा दिए गए एजेंडा कार्य में असफल घोषित होता है तो उसके विरुद्ध जनता के साथ चल, धोखाधड़ी, देश की सम्पत्ति का दुरूपयोग किये जाने जैसी धाराओ में नियमानुसार वैधानिक कार्यवाही की जाय, ऐसी रणनीति भी सरकार को बनानी होगी. मात्र अपने चहेते उम्मीदवारों को खुश करने के लिए मंत्रालय में पद वितरण के लिए स्वच्छ प्रणाली व्यवस्था पर भी ध्यान दिया जाना आवश्यक होगा. यदि यह सम्भव होता है तो निश्चित ही भारत में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाये जाने में सुगमता होगी और जनता को भी झूठे वादो का बोझ नहीं उठाना होगा, फिर यह समस्या नहीं रह जाएगी कि क्षेत्र का विधायक या सांसद अथवा प्रधान किस जाती या धर्म अह्वा समुदाय का है, जो देशहित में विकास कार्य करेगा वह सत्ता की कुर्सी योग्य स्वतः प्रमाणित रहेगा.

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