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बदलाव- कुछ तो करना ही होगा

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समय बदल रहा है,देश बदल रहा है, लोग बदल रहे हैं, नीतिया बदल रही है और लोगों की मांग बदल रही है. कोई चाहता है सरकार बदल जाये, कोई चाहता है देश बदल जाये, कोई चाहता है धर्म बदल जाये तो कोई चाहता है जाति बदल जाये, किसी को आरक्षण की चाहत है, किसी को सत्ता की चाहत है, किसी को भ्रष्टाचार करके जल्द जल्द से धनपशु बन जाने की चाहत है तो किसी को गरीबो को दास बनाकर सत्ता पर आसीन रहने की चाहत है. जब ऐसी संभावनाओ की बाढ़ आ रही है तो निश्चित ही केन्द्र सरकार को भी बदलाव की तरफ कुछ कदम उठाना चाहिए और यह कदम ऐसे होने चाहिए जिससे भ्रष्टाचार, अनर्गल तरीके से अभिव्यक्ति की आजादी का प्रयोग करने वाले, गलत तरीके से वोट देकर गलत हाथो को कुर्सी का लाभ देने वाले साथ ही देश का विकास भूलकर जाति और धर्म की डुगडुगी बजाकर जनता को तमाशा बनाने वालो पर अंकुश लगाया जा सके. देश का विकास करना है तो नियम बनाने से अधिक उसके अनुपालन पर जोर दिया जाना होगा.
अब बात यह आती है कि आखिर सरकार ऐसे क्या नियम बनाये जिससे अधिक से अधिक लाभ शोषित वर्ग तक पहुचे और शोषण करने वालो पर नियंत्रण लगाया जा सके तो बहुत पुरानी कहावत है जहाँ चाह वहां राह, प्रयास तो करना ही होगा मंजिल को पाने के लिए. आने वाले दिनों में विधानसभा चुनाव होना प्रस्तावित है जिसमे प्रत्येक चुनाव में कितने भी सुरक्षा इंतजाम के बाद धांधली हो ही जाती है, आश्चर्य नहीं होगा जानकर कि जो लोग बूथ तक नहीं पहुचते उनके भी वोट प्रत्याशियों द्वारा अपने पक्ष में डाल दिए जाते हैं. इस प्रकार जनता के न चाहने के बावजूद भी दूषित सत्ताधारी के अधीन उनकी जीवनशैली प्रभावित होती है. सरकार को चाहिए कि होने वाले चुनाव में ऑनलाइन वोटिंग की प्रक्रिया लागू की जानी चाहिए और वोटिंग के लिए मतदाता का आधार कार्ड अनिवार्य होना चाहिए जिससे उसके नाम का दुरपयोग अन्य किसी के द्वारा न किया जा सके साथ ही जो मतदाता वोट डालने बूथ तक नहीं पहुच पाते वह ऑनलाइन वोटिंग कर सकते हैं. अधिकांशतया आधार कार्ड धारक बन चुके हैं जिनके पास नहीं है सरकार को त्वरित गति से अभियान चलाकर प्रक्रिया पूर्ण करा लेनी चाहिए फिर अन्य विकल्प रखे जा सकते हैं मतदान करने के लिए जो पूर्व से लागू हैं. ऐसे ही संविधान में परिवर्तन की आवश्यकता है जिसका लाभ उठाकर संसद में अमर्यादित व्यवहार होने के साथ साथ देश की एकता अखंडता पर प्रभाव पड़ता है. संविधान में यह निश्चित होना चाहिए कि अभिव्यक्ति की आजादी का अर्थ मुख्यतया क्या है ? सभी धर्मो के लिए एक देश एक ही नियम का पालन अनिवार्य किया जाये, आरक्षण जैसी कुरीति को गरीबो के अधिकार में प्रयोग किया जाये तथा समय समय पर उसमे बदलाव की नीतिया सम्मिलित की जाये. चुनाव के उम्मीदवारों में उचित शैक्षणिक योग्यता रखने वाले को वरीयता दी जाये, संसद में किसी बिल के पारित करने में विपक्ष के द्वारा आपत्ति करने पर ऑनलाइन वोटिंग के आधार पर जनता का मत प्राप्त किया जाये आखिर जनता के पैसे से संसद चलती है तो जनता क्यूँ मूकदर्शक बनकर तमाशा देखेगी वह भी अपना योगदान देकर लाभकारी बिलो को अपने विवेक से पारित करने या न करने की मंजूरी दे सकती है. विकास कार्यों हेतु राज्य सरकारों को दिए जाने वाले अनुदान की समीक्षा के लिए समन्वयक अधिकारी की नियुक्ति की जानी चाहिए और यह नियुक्ति सरकार द्वारा चिन्हित 05 नाम दिए जाने पर ऑनलाइन वोटिंग के माध्यम से जनता द्वारा चुना जाना चाहिए जिससे निष्पक्षता बनी रहे और सरकार पक्षपात के विवाद से सुरक्षित रहे. सबसे कड़े नियम देश की संवेदनाओ को ध्यान में रखकर बनाये जाने चाहिए जिसमे धर्मिक भावनाये न आहत हो ऐसे विकल्प को मजबूती दिया जाना चाहिए, जिन्हें देश में रहते हुए अन्य देश प्यारा लगता है और वह उनके नारे लगाना,झंडा फहराना उचित समझते हैं उनके लिए उपयुक्त नियमों को स्थान देना होगा संविधान में तभी संभव है जैसा बदलाव देश के विकास के लिए चाहिए उसमें कुछ सार्थकता आ सके.

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