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क्या यही जागरूकता है, विचार कीजिये

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जिसकी रोटी खाये उस पर धौंस जमाये, जैसी मिसाल हो गयी है भारत राष्ट्र के राजनीतिज्ञों की। महान अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञाता चाणक्य ने कहा था कि सभी को राजनीति में भाग लेना चाहिये, यदि हम राजनीति में भाग नही लेते तो इसका अर्थ है किसी अयोग्य व्यक्ति को शासन करने का अवसर प्रदान करना। महान विचारक की बात तार्किक है असत्य होने का प्रश्न ही नही उठता किन्तु आज राजनीति संसद से निकलकर, चाय की दुकानों और घर तक प्रवेश कर चुकी है फिर भी सही शासक को सत्ता में हम नही ला पा रहे हैं तो यहॉ किसकी अयोग्यता का परिचय मिलता है ? अयोग्य शासक के स्वार्थपरक कुशल नीतियों का अथवा जनता की अविकसित जागरूकता का, दोनो ही स्थिति में अहित राष्ट्र का ही हो रहा है फिर भी हमें गर्व है हम हिन्दुस्तानी है। हम हिन्दुस्तानी अवश्य है किन्तु हमारा शासक सदैव अंग्रेज नीतियों का पालन करता रहा है जिससे जनमानस में एक दूसरे के मध्य नफरत और आपसी फूट का वृक्ष पनपता रहता है जिसकी जड़ मजबूत होती जाती है और इसकी शाखाओं का प्रभाव जनमानस को विवेकशून्य बनाता रहता है, जिसका परिणाम अयोग्य शासक निश्चिन्त होकर अपने स्वार्थ सहित सुख संसाधनों का उपभोग करता है और हम पहले भी शारीरिक रूप से गुलाम रहकर असहाय थे और आज मानसिक रूप से गुलाम बनकर आपसी भाईचारा को समाप्त कर रहे हैं और कौमी एकता को खण्डित कर रहे हैं, यह घातक है सही निर्णय नहीं है। जिस प्रकार खेत की मिट्टी को बार बार निकाले जाने पर उसकी उर्वरक क्षमता समाप्त हो जाती है उसी प्रकार बार बार किसी जाति विशेष पर टिप्पणी किये जाने पर हमारे अन्दर भावना तो दूषित होती ही है साथ ही आपसी एकता और अखण्डतारूपी उर्वरक क्षमता समाप्त हो जाती है। शेष बचता है मात्र बंजर भूमि का टुकड़ा जिसमें कई प्रकार के कांटेदार वृक्षों का जन्म होता है जो मात्र पीड़ा पहुंचाते है सुख नही देते। इसी प्रकार हमारे हृद्य में उत्पन्न घृणा सुख नही देती न हमें और न दूसरों को। आखिर हम मजदूर क्यूं बने हैं अपनी ही भूमि पर, कैसे कोई अयोग्य शासक हमारी भूमि पर द्वेषभावना, घृणा का बीज फेंकता है और हम उन बीजों को नष्ट करने के स्थान पर उसे पोषित करते है और फिर फल सहित उस वृक्ष से छॉह की आशा करते हैं और यह भूल जाते हैं कि बोया पेड़ बबूल का तो आम कहॉ से होय। यही अज्ञानता है जिसे जागरूकता की रोशनी से समाप्त करना आवश्यक है। अयोग्य शासकों को सत्ता में लाने वाले हम है तो उनके सत्ता में प्रवेश के लिये बाधक हमें ही बनना होगा।
चुनाव के समय राजनीति का स्तर इतना अधिक निम्न हो जाता है कि पार्टी अध्यक्ष सहायता फण्ड और पार्टी फण्ड के नाम पर करोड़ो रूपया एकत्रित करती है और उम्मीदवार के नाम पर फिल्मी सितारों को टिकट दे देती है, जो फिल्मी सितारे फिल्मों की शूटिंग में व्यस्त रहते हैं क्या वह जनता के बीच रहकर सुख दुख को समझ सकते हैं कभी नहीं, फिर भी हम कुछ नही कहते और पार्टी के नाम पर वोट देकर अपना कर्तव्य मताधिकार पूर्ण करके प्रसन्न हो जाते हैं, यह कैसी जागरूकता है ? चुनाव उम्मीदवार में जेल में सजा काट रहे अपराधियों को टिकट मिलता है और विडम्बना यह है कि उसे भी हम जीत दिला देते हैं अपना वोट देकर, क्या यही जागरूकता है ? जो स्वयं अपराधी है और जेल में बन्द है वह कैैसी सुरक्षा आपको दे सकता है, क्या कभी विचार किया आपने ? क्यूं नही हम सुयोग्य शासक हेतु सही उम्मीदवार का चयन करते हैं, क्यूं पार्टी के नाम पर वोट खराब करते हैं, विचार कीजिये क्या यही जागरूकता है ? हमें बदलना होगा तभी होगा स्वच्छ भारत का निर्माण।

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