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चेहरे पर चेहरा लगा लेते हैं लोग,
फिर भी कैसे मुस्कराते हैं लोग,
बन जाते हैं दोस्त बातों बातों में आपस में लड़ाते हैं लोग,
छीनकर रोटी गरीब की खुद की भूख मिटा लेते हैं लोग,
नोचकर लाशो का कफ़न महफ़िल के परदे सजाते हैं लोग,
गिर गए जमीर से नीचे अपनों को कुचलकर बढ़ जाते हैं लोग,
लगाके आग खलिहानो में आशियानो को रोशन करते हैं लोग,
हद हो गयी बेशर्मी की जब बेटी की उम्र से शादी रचाते हैं लोग,
काट देते हैं हरे पेड़ों की शाख को अब गमले में फूल सजाते हैं लोग,
कुर्सी की सियासत में हो गए अंधे एक दूसरे की पीठ खुजाते हैं लोग,
दरवाजे पर लिखा कुत्तों से सावधान खिडकी से पत्थर फेंकते हैं लोग,
दर्द देते हैं नासूर की तरह फिर घाव को कुरेदकर हाल पूछते हैं लोग,
आती नहीं हिंदी भूले मात्रभाषा और अंग्रेजी में मेन्यू पढते हैं लोग,
बहुत लिख दिया कुछ तो समझ आए पढकर फिर भूल जाते हैं लोग.
दौलत बना खुदा है धन कहा दबा है पूछते मुर्दे को गुदगुदाते हैं लोग.
चेहरे पर चेहरा लगा लेते हैं लोग, फिर भी कैसे मुस्कराते हैं लोग.
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