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राजनीति के विदूषको का अनसुलझा चरित्र

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विदूषक एक ऐसा चरित्र जिसे मसखरा, भेष बदलकर करतब दिखाने वाला, सर्कस के जोकर आदि के रूप में हम जानते हैं. यह पहले राजदरबारों में राजाओ का मनोरंजन करने के लिए विशेष स्थान रखते थे . यह विदूषक राजा महाराजाओ के लिए नित नए नए प्रयोजन करते थे जिससे राजा प्रसन्न होकर उन्हें पुरष्कृत करते थे, यही पुरस्कार विदूषक के जीविका का साधन था. हमने बचपन में कहानियो में तेनालीराम के संबंध में पढ़ा है, वह विजय नगर के राजा के यहाँ विदूषक नियुक्त था और अपनी मूर्खतापूर्ण अथवा बुद्धि, चातुर्यता के साथ अनेको कार्यों को अंजाम दिया करता था जिनसे सम्बन्धित कहानियो को मनोरंजक साहित्यों में सम्मिलित किया गया और टेलीविजन पर धारावाहिक के रूप में भी प्रसारित किया गया था.
आज भारत की राजनीति व्यवस्था इतनी लचर होती जा रही है कि अन्य देशो की तुलना में हास्य का केन्द्र बना हुआ है, एक तरफ जहाँ भारत अपनी शक्तियों को बढ़ा रहा है वही दूसरी तरफ घरेलू मैदान में वह विवश है देश की कई प्रकार की समस्याओ का निदान करने में. यह समस्याए आज उत्पन्न नहीं हुई बल्कि इनका जन्म पुराना है किन्तु इन सस्याओ को आज जानबूझकर सामने लाया जा रहा है जिसका स्पष्ट कारण राजनीति की सत्ता में उथल पुथल करना है. ऐसे ही उथल पुथल सत्ता का केन्द्र वर्तमान में बिहार राज्य बना हुआ है जो होने वाले चुनाव से पहले अपनी अपनी कुर्सी को पकड़कर एक दूसरे को कमजोर साबित करने में स्वयं को योग्य सिद्ध करना चाहता है, ऐसे घमासान में कोई शूरवीर नहीं बल्कि जो स्वयं को राजनितिक योद्धा कहलाने का भ्रम रखते हैं वही सच्चे विदूषक के रूप में उभरकर सामने आये हैं. इन्हें विदूषक ही कहा जाना उचित है जो राष्ट्र सेवा के लिए कुर्सी नहीं चाहते बल्कि स्वयं के सुख संसाधन की लोलुपता में स्वार्थ सिद्ध करने हेतु कुर्सी का मोह त्याग करने में असमर्थ हैं.
बिहार चुनाव के संग्राम में जिसे विजय मिलनी है उसका निर्धारण जनता का वोट निश्चित करेगा किन्तु एक दूसरे के गले में बांह डालकर चलने वाले मित्र अब शत्रु नजर आ रहे हैं, किन्तु जनता बेवकूफ नहीं है और इसी को जागरूकता कहा जा सकता है कि विगत दिनों में बिहार में राजनेताओ ने जनता को रिझाने के लिए अलग अलग तो कही एक साथ मंच साझा करते हुए रैली का आयोजन किया, जिसमे कभी कई दलों के नेताओ ने मिलकर परिवर्तन रैली का आयोजन किया जिसमे जनता ने भाग लेना भी उचित नहीं समझा, आखिर इन विदूषको के वादे हैं जो पांच साल में पुरे नहीं हो पाते और जनता तो बेचारी कई सालो से ऐसे वादों का शिकार होती रही है और वह कुछ नया चाहती है ऐसे घिसे पिटे वादों वाली सरकार से जनता का मोह भंग होता नजर आ रहा है तभी तो हुंकार रैली का परिणाम जनता ने भारी भीड़ इकट्ठा होकर सम्पूर्ण देश को उदहारण प्रस्तुत किया.
यह विदूषक राजनीतिज्ञों की भूमिका किस प्रकार की है समझना आसान नहीं है जो स्वयं सत्ता प्राप्ति के लिए राष्ट्र की जनता को दुःख देकर स्वयं का सुख खोजते हैं. यह विदूषक लीला का समय ज्यादा दिनों तक नहीं चलने वाला, इसके लिए सोशल मिडिया की भूमिका भी काफी महत्वपूर्ण रही है जो प्रतिदिन इन विदूषको द्वारा रची जाने वाली भूमिकाओ को जनता के समक्ष प्रस्तुत करता रहता है, जनता जागरूक हो रही है इसका श्रेय सोशल मीडिया को ही जाता है और जनता अपना फैसला स्वयं करने को प्रतिबद्ध हो रही है, जनता को विदूषको का असली चेहरा दिख रहा है कि कभी इस पार्टी में, कभी उस पार्टी में क्या यह विदूषक प्रतिदिन नयी पार्टी का निर्माण जनता के सुख के लिए कर रहे हैं या अपने सुख के लिए, यह अनसुलझा चरित्र है इन विदूषको का जिसे जनता धीरे धीरे समझ रही है आखिर बच्चा भी पैदा होकर बड़ा ही होता है और अपने निर्णय स्वयं लेता है फिर यह जनता कब तक गुमराह रहेगी इन विदूषको के चेहरे पर लगे मुखौटो को देखकर, जनता जागरूक हो रही है वह राष्ट्र का निर्माण अपने विवेक से करने में सक्षम होने के प्रयास में है.

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