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जिस प्रकार पत्थर को तराशकर जौहरी हीरा बना देता है उसी प्रकार हमारा विद्यालय जिसे ज्ञान मन्दिर का स्थान प्राप्त था कभी, यहॉ भी विद्यार्थियो को उनकी अज्ञानता को दूर करके समाज के समक्ष हीरे जैसी योग्यता रखने वाले विद्यार्थियों के रूप में तराशा जाता है, किन्तु आज यह ज्ञान का मन्दिर परिवर्तित हो चुका है व्यवसायिक प्रतिष्ठान के रूप में। व्यवसायिक रूपान्तरण का गहरा असर शिक्षा पर पड़ने का परिणाम यह हुआ कि व्यक्तिगत विद्यालयो में लुभावनी सुविधायें उपलब्ध करायी जाने लगी और लोग आकर्षित होकर इन विद्यालयो की तरफ तेजी से अग्रसर हो रहे है। जहॉ कभी विद्यालय व्यवस्था के नाम पर शुल्क लिया जाता था वहॉ आज एडमिशन के नाम पर भारी फीस और डोनेशन की सुविधा पॉव पसार चुकी है। इसके विपरीत सरकारी विद्यालयो का स्थान मात्र मुफ्त खाद्य सामग्री वितरण केन्द्र बनकर रह गया है बस, आज सरकारी विद्यालयो का स्तर इतना अधिक नीचे हो गया है कि विद्यालय है किन्तु शिक्षक नहीं, जबकि शिक्षको को भारी मात्रा में सरकार स्थान देने हेतु प्रयासरत है। शिक्षक है तो विद्यार्थी नहीं, यही देखने को मिलता है सरकारी विद्यालयो का हाल जहॉ १०० के स्थान पर १० विद्यार्थी ही उपलब्ध मिलते हैं वह भी मात्र मुफ्त भोजन सुविधा प्राप्त करने की लालसा से। विद्यार्थी और शिक्षक है तो सुविधाओ का अभाव है, कहीं विद्यालयो में बरसात का पानी इतना अधिक भर जाता है कि काफी दिनो तक आसपास तालाब जैसा माहौल दिखाई पड़ता है और शिक्षक भी जो नियुक्त हो रहे हैं इन विद्यालयों में उन्हे स्वयं शिक्षा की आवश्यकता होती है क्यो कि यह आरक्षण सेवा के अन्तर्गत शिक्षक बनते हैं जिन्हें जनवरी, फरवरी बोलना तो आता है किन्तु उसकी स्पेलिंग गलत लिखते हैं, इस सम्बन्ध में कई बार मीडिया ने शिक्षको का साक्षात्कार टेलीविजन के माध्यम से दिखाया है। ऐसे सभी शिक्षको को निरन्तर प्रशिक्षण संस्थानों मे भेजा जाय। वर्तमान में विद्यार्थियो को लालच देकर विद्यालय बुलाया जाता है और वह लालच की पूर्ति होते ही विद्यालय का मोह त्याग देते हैं। अब प्रश्न यह है कि सरकार क्यों स्वयं को इतना असहाय महसूस करती है कि उसे सुविधाओ के नाम पर सरकारी विद्यालयो का स्तर जीवित रखना पड़ रहा है ? क्या सरकार वह सुविधायें मुहैया नही करा सकती जो व्यक्तिगत विद्यालयो द्वारा अपनायी जा रही हैं? अवश्य! क्यों नही, सरकार ने भी काफी सुविधाओ को प्रदान किया है किन्तु स्थानीय व्यवस्था में सारे प्रयास विफल हो जाते हैं। विद्यालयो को कम्प्यूटर, प्रोजेक्टर उपलब्ध कराये गये किन्तु विद्यालय के स्टाफ की उदासीनता का शिकार हो गयी यह सुविधा, विद्यालयों में कम्प्यूटर से पढ़ाना दूर की बात उन्हे खोलकर भी नही देखा गया और कितने संसाधन खराब हो गये, इस सम्बन्ध में सरकार द्वारा कड़ा रूख अपनाया जाता तो यह अवश्य प्रभावी होता किन्तु शिथिलता का परिणाम सदृश्य हुआ और सरकारी विद्यालय की छवि का स्तर नीचे होता जा रहा है। यदि सरकारी विद्यालयो और व्यक्तिगत विद्यालयो का मानक सरकार द्वारा सही सामंजस्य से सुलझा लिया जाय तो अवश्य ही प्रभावशाली दूरगामी परिणाम प्राप्त होंगे। व्यक्तिगत विद्यालयों की सुविधा सरकारी विद्यालयों में उपलब्ध कराते हुये संसाधनों के प्रयोग हेतु सख्ती की जाय साथ ही बच्चो को दी जाने वाली मुफ्त सुविधाओ को समाप्त करते हुये पुरस्कार रूप में पात्रता के आधार पर सुविधा प्रदान की जाय, जो बच्चा पढ़ाई में यह स्थान पाता है उसे क्या सुविधायें मिलेगी, साफ सफाई पर ध्यान देने वाले बच्चो के लिये पुरस्कार, विद्यालय में उपस्थित के सम्बन्ध में पुरस्कार आदि के माध्यम से मिलने वाले लाभ का असर शीघ्र ही होगा बच्चो पर, वह समझेंगे कि हम अच्छा करेंगे तब यह लाभ हमें प्राप्त होगा मुफ्त में कुछ नही मिलेगा तभी यह जागरूक बनेंगे और शिक्षा का महत्व भी समझेंगे। बच्चो के लिये मुफ्त परिधान और पुस्तक कापी जैसी सुविधा को यथावत रखा जाय। विद्यालयो को दी जाने वाली सुविधाओ का उपयोग किस प्रकार हो रहा है, इसके लिये ब्लाक स्तर पर मानीटर नियुक्त किये जाय जो विद्यालयों में सुविधाओ के सम्बन्ध में निरन्तर आख्या उच्चाधिकारियों को प्रेषित करते रहें, बच्चो के बैठने लिये टाट फट्टी व्यवस्था समाप्त हो मेज कुर्सी की व्यवस्था पर बल दिया जाय आदि ऐसा ही थोड़ा बहुत परिवर्तन करके सरकारी विद्यालयों की गरिमा और स्तर को बनाये रखा जा सकता है, सभी को विद्यालय आने के नाम पर दी जाने वाली मुफ्त सुविधा समाप्त की जानी चाहिये।
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