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गाँव की गन्दी राजनीति और विकास

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हमारा गांव और गांव का सीधा सादा सरल जीवन, यह सब मात्र किताबी धारणा बन कर रह गयी है तथा किसी दुरास्वप्न की भॉति लगता है, वास्तव में गांव का सीधा सादा जीवन शहरी जीवन की तुलना में अधिक दूषित और असुरक्षित हो गया है इस स्वार्थ और लालसारूपी अन्ध जीवनशैली में। गॉवों में राजनीतिक स्तर में जहॉ बुजुर्गो से लेकर नवयुवकों तक को सिद्धहस्त प्राप्त है वहीं दूसरी ओर नवयुवकों से लेकर बुजुर्गो तक शिक्षा के प्रति नकारात्मक रवैया का स्थान उच्चता श्रेणी पर स्थापित है। गॉव में जहॉ महिलायें भी खुले शौच के स्थान पर शौचालय का प्रयोग करने में जागरूक हुयी है तो ग्रामीण लड़कियां भी आधुनिक चकाचौंध में सास बहू एवं प्रेमी प्रेमिकाओ के धारावाहिक चरित्रो से प्रभावित है। ऐसा ही बहुत कुछ बदलाव देखने को मिल रहा है ग्रामीण जनजीवन में किन्तु एक बात की समानता शहरी जनजीवन से बराबर तुलना करती दिखायी देती है वह है गॉव की राजनीति। गॉव की राजनीति का स्तर अत्यधिक प्रबल होता जा रहा है जिससे ग्रामीण विकास पूर्णतया बाधित होता जा रहा है, गॉव का राजनीतिक स्तर समाज और देश से ज्यादा अपनों को ही दबाकर रखनें में स्थिर दिखाई पड़ता है। खेत का विवाद हो या घर का, जानवरों की बात हो या रहन सहन सभी में राजनीतिक चर्चा का अंश तलाश करने में माहिर है ग्रामीण व्यक्तित्व। धोखेबाजी, खून खराबा, गुण्डागर्दी का जहर इतनी अत्यधिक मात्रा में पाया जाता है इनके अन्दर कि परिणाम भाई भाई को गोली मार देता है मामूली खेत में पानी चलाने का विवाद होने पर, किसी की सहायता के नाम पर उससे धन उगाही करता धूर्त ग्रामीण तो कहीं खाद्य सामग्री के वितरण में वंचित रह जाने वाला मूर्ख ग्रामीण, कोई भी हो किन्तु गन्दी राजनीति में स्वयं को श्रेष्ठ कहलाना पसन्द करता है। शाम को किसी भी प्रतिष्ठित व्यक्ति के दरवाजे पर कुछ ग्रमीण एकत्र हो जाते हैं फिर प्रारम्भ होता है घरफोड़ुआ या फिर घरझंकुआ वार्ता का दौर जिसमें किसी की बहू, किसी की बेटी, किसी के रहन सहन जैसे विषयों में भाग लेकर आनंदित होते रहते हैं, यहॉ गॉव या देश के विकास पर चर्चा करना उचित नहीं समझते या फिर उनका ध्यान नही पहुंचता यहॉ तक, कह पाना सरल नही है । इसी प्रकार चौराहे पर एकत्र नवयुवक लड़कियों को देखना और छींटाकशी करने में आनन्द महसूस करते हैं तो चौराहे पर चाय की दुकानो पर बैठे श्रेष्ठजन स्वयं के द्वारा चयनित अंगूठा छाप प्रधान को गॉव की राजनीति के सम्बन्ध में ज्ञान देनेे में योग्यता सिद्ध करते दिखाई पड़ते हैं। गॉव में पशुपालन का स्तर घट गया इसकी चिन्ता वह नही करते किसके पास कौन सा नया कृषि संसाधन है उसे कैसे पीछे करके किसी और को उकसा कर नया कृषि संसाधन गॉव में लाया जाय इस पर विचार करते हैं, गॉवो में शिक्षा का स्तर उन्नति नही कर रहा इस पर विचार करना आवश्यक नही समझते बल्कि कौन गॉव से शहर की तरफ पढ़ने जा रहा है उसे रोकने के लिये योजनाओ को तैयार किया जाता है, गॉव की कृषि व्यवस्था को उन्नत करने के स्थान पर कृषि योग्य जमीन बेचकर परिवार का भरण पोषण करने में विचारशील रहते हैं यह स्वरूप है ग्रामीण राजनीति का, ऐसी राजनीति जिसका उपयोग मात्र समय व्यतीत करने के लिये किया जाता है साथ के सहयोगियों को विकास से पीछे हटाने के लिये किया जाता है, जो सम्भवतः शहरी राजनीति की तुलना में ग्रामीण राजनीति का सबल चित्रण प्रस्तुत करता है। गन्दी राजनीति में सीधा सरल अपनापन रखने वाला ग्रामीण व्यक्तित्व धूमिल होता जा रहा है जो जागरूकता के नाम पर शिखर पर जाने को तत्पर है किन्तु विकास के नाम पर सिफर (शून्य) तक सीमित होता जा रहा है।

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