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आरक्षण का आधार जातिगत नहीं आर्थिक हो

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जैसे लोहे को लोहा काटता है वैसे ही आरक्षण काट रहा है आपस में एक दूसरे को इसमें कोई दो राय नहीं है. असमानता को समानता का स्थान देने का उद्देश्य आरक्षण आज मात्र संक्रामक रोग बन कर रह गया है जो धीरे धीरे धर्म से जाति तक उलझे लोगो को शिकार बनाता चला जा रहा है साथ ही इसका दुष्परिणाम उन लोगो पर भी असर दिखा रहा है जिनका आरक्षण में प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष कोई लाभ नहीं है. दलितो के उत्थान हेतु आरक्षण को सम्मिलित किया गया संविधान में जो आज कुछ वर्ग विशेष को छोडकर सभी धर्मो और जाति के लिए संक्रमण बन गया है. गहरा असर मानसिक विकार के रूप में क्षतिग्रस्त कर रहा है यह आरक्षण, आरक्षण का परिणाम सदैव से घातक ही रहा है कभी धर्म को चोट पहुचाई गयी कभी जातियों को तोडा मरोड़ा गया. इसका व्यापक रूप जैसे जैसे फैलता जायेगा सभी को दूषित कर देगा यह एक दिन, इससे पहले इस पर रोक लगाना आवश्यक है क्यों कि आरक्षण एक ऐसा बंधपत्र है जिसमे मात्र गुलामी ही दिखाई पड़ती है और यही साकार रूप भी बनेगा आगे चलकर, जब आरक्षण का लाभ लेने वाला कम योग्यता के बावजूद अपने से अधिक सक्षम व्यक्तित्व के जमीर को ठेस पहुचायेगा जैसा कि अभी प्रचलन में है तब जन्म होगा कुंठा का और कुंठा के जन्म के बाद उन्नति का मार्ग स्वतः अवरुद्ध हो जाता है और अवनति का मार्ग विस्तृत होने लगता है. आज जनहित याचिका पर संज्ञान लेते हुए उच्च न्यायलय ने केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों से आरक्षण को समाप्त करने या एक समान लागू करने के संबंध में टिप्पडी दिए जाने की बात कही गयी है किन्तु यह राजनैतिक ठेकेदार क्या ईमानदारी से आरक्षण के संबंध में कोई हितकारी टिप्पडी प्रेषित कर सकेंगे ऐसी आशा करना भी मूर्खता होगी क्यों कि आरक्षण का रोग इनके अंदर से ही तो आम लोगो तक पहुच रहा है दिन प्रति दिन आखिर आरक्षण के नाम पर ही तो इनकी शानो शौकत है जिसकी रोटी खा रहे है यह सभी और यह इसके विरुद्ध कैसे कोई टिप्पडी दे सकते हैं, जब कि आरक्षण को समान रूप से लागू करते हुए इसका आधार आर्थिक रूप से स्थापित कर दिया जाये तो स्वतः इस बीमारी को समाप्त किया जा सकता है. आज जो अमीर है वह भी राशन कार्ड से राशन ले रहा है और जो गरीब है तो वह गरीब है यही अभिशाप पर्याप्त है गरीब के लिए जीवन में. जब तक निम्न स्तर को यह सुविधा प्राप्त नहीं हो जाती तब तक इसका दूसरा कोई भी विकल्प स्वीकार करना संभव नहीं है, बहुत पुरानी कहावत है गाँव में “किसी के आगे नौ नौ बरा, किसी के आगे पत्थर परा”, और यही हो रहा है जैसा कि आरक्षण का चित्रण हम सभी देखते आ रहे है. जरुरत है आज सभी को एकजुट एकमत होने की अन्यथा सभी झुलस रहे हैं अभी आगे चलकर इसकी आग में जलने से कोई नहीं बचा पायेगा.

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