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हम बहुत व्यस्त हैं

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हमें आदत सी हो गयी है कि कोई हमें हमारा काम बताये, हमें समझाए, हमारे साथ साथ लगकर उस काम को अंजाम दे. सभी से बस एक ही आशा है की उससे हमें क्या लाभ मिल रहा है और दूसरे लोग जिन्हें हमारी जरुरत है, उनके लिए सोचने का वक्त नहीं है हमारे पास. ऐसे मामलो में हम बहुत व्यस्त रहते है लेकिन व्यस्त किस काम में रहते है इसका भी कोई प्रभावशाली जवाब हमारे पास नहीं है. ऐसे ही देश के प्रधानमंत्री जी ने भारत को स्वच्छ बनाये रखने के उद्देश्य से सभी को स्वच्छता अपनाने और सफाई अभियान चलाकर स्वच्छ भारत मिशन अभियान की अभिलाषा की, किन्तु परिणाम आपके सामने है. अब देश का हर नागरिक शायद ये चाहता है की जिसने ये कार्यक्रम को प्रारम्भ किया है वही सबके घर-घर जाकर आस पास की गंदगी को झाड़ू लेकर साफ़ करे तब ज्यादा अच्छा होगा, क्यों की हम तो करने वाले नहीं, बहुत व्यस्त है हम. गुटका, पान, तम्बाकू, फल आदि खाकर उसका कचरा सड़क पर फेक देते है, थूक देते हैं, यही क्या कम है. हमारे अंदर इतनी जागरूकता है की हमें पता है गंदगी साथ में घर लेकर नहीं आया जाता और यही पर्याप्त है हमारे लिए, बाकी देश को साफ़ रखना हमारी जिम्मेदारी में नहीं आता. सफाई की बात पुरानी हो गयी जैसे चल रहा था चलने दो क्या जरुरत है साफ़ सफाई की, आखिर विश्व में नाम तो है न भारत का चाहे वह गंदगी में ही क्यों न हो, बस नाम होना चाहिए इतना पर्याप्त है. भारत सरकार द्वारा गरीबो के हित में प्रधानमंत्री जन-धन योजना को चलाकर, एक बचत योजना में देश को जोड़ने का प्रयास किया गया, इसका लाभ सीधा यही होता की हर गरीब का अपना खाता और उसमे जमा किया गया धन भी गरीब का. देश की समृद्धि को विश्व स्तर पर एक अच्छा स्थान देने हेतु अच्छा प्रयास किया भारत सरकार ने, लेकिन हमारी आदत फिर हमारे सामने आ गयी, हमारा खाता खुल गया लेकिन हम अपने पैसे इसमें क्यों जमा करे, खाता खुलवाया सरकार ने तो इसमें धन भी सरकार को जमा करना चाहिए, मरने के बाद परिवार वालो को १ लाख रुपया तो मिल ही जायेगा इस खाते के खुल जाने के बाद मिलने वाला फायदा तो हमारा है ही, फिर हम अतिरिक्त धन क्यों जमा करे अपने और अपने बच्चो का भविष्य इससे सुरक्षित थोड़े होने वाला है, अरे ऊपर वाले ने पेट दिया है तो खाने को भी देगा, उपरवाले ने पैदा किया है तो जिन्दा भी रखेगा, ऐसा सोचना हमारे लिए हितकर है या फिर अपना धन जाकर सरकार के कहने पर बैंक में जमा करने में इसका फायदा है, देखेंगे जब जरुरत होगी. अब बताइये हम कहा गलत है, क्या गलत कर रहे है, ये सब तो हमसे पहले भी हमारी पीढ़ी के लोग करते आये हैं. बहुत शोर शराबा, हंगामा मचा था नए प्रधानमंत्री के कार्यभार ग्रहण करने से पहले, अच्छे दिन आने वाले हैं, और अच्छे दिन कब और कैसे आने वाले है इसके लिए हमने सभी समाचार पत्रो को पढ़ा, टी.वी. देख देख कर आँखे खराब होने वाली है, इंटरनेट की दुनिया में हम ऐसे खो गए ये पता करने में लेकिन ये अच्छे दिन कब और किधर से आने वाले है यह पता नहीं लगा सके, कभी तो रेलवे स्टेशन गए, कभी बस स्टैंड की तरफ भी दौड़ लगायी और कभी सड़क के किनारे लगे बैनरो पर भी ध्यान लगाया लेकिन यह अच्छे दिन नजर नहीं आये, हाँ थोड़ा बहुत विकास शहर का होता नजर आया लेकिन वह तो सरकारी काम काज है होता रहता है, सरकारी कार्यालयों में कार्य व्यवस्थित ढंग से होना प्रारम्भ हुआ है, लेकिन इसमें भी कुछ नया नहीं है आज नहीं तो कल ये सब होना ही है. सरकार की नयी योजना “मेक इन इंडिया” की बात भी कुछ अलग है, भारत में बने सामान का निर्यात बाहरी देशो को होगा इससे भारत की योग्यता और आर्थिक स्थिति पर गहरा प्रभाव पड़ेगा जिसका लाभ अभी नहीं लेकिन आगे चलकर देश को दिखेगा, जब भारत में भी समस्त सुविधाये होगी जैसी हमें विदेशो में देखने को मिलती है. लेकिन इसमें हम क्या करे हम तो हमेशा से ही जुगाड़ से काम करते आ रहे है अब सरकार को किसी काम के लिए जुगाड़ चाहिए तो हम उसमे सहयोग कर सकते है और मेक इन इंडिया में क्या बनाये भारत में सबके साथ साथ खुद को बेवकूफ बना रहे है इससे ज्यादा सहयोग की अपेक्षा हमसे न करे कोई तभी बेहतर है, जितना वक़्त यह सब करने में लगाएंगे उतनी ही देर में चौराहे पर बैठकर ५ रूपये की चाय पीकर मुफ्त में समाचार पत्र पढ़कर लोगो के बीच ज्ञाता बनना ज्यादा लाभकारी है, यह है देश की स्थिति जिसे थोड़े बहुत नहीं बहुत ज्यादा सुधार और परिश्रम की आवश्यकता है लेकिन इससे ज्यादा राजनीतिक दल सक्रिय है, जो एक दूसरे को नंगा करने और स्वयं कुर्सी पर बैठने की कोशिश में ही लगे रहने में स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते हैं. हाँ इन नेताओ की रैली हो या फिर धरना प्रदर्शन करना हो तो हमारे पास समय ही समय है, चाहे वह धरना या आंदोलन हमारे हित में हो या फिर अनहित में इस बात का ज्यादा असर नहीं पड़ता, हमारे पास बहुत समय है. लेकिन बात जब देश के विकास की हो या फिर स्वयं में सुधार की या फिर जागरूकता की, तब हम बहुत व्यस्त हैं.

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